पैर की जूती

चवन्ना जब तक एक-दो घंटा रोज शाम को अपनी घरवाली को गालियाँ न सुना लेत, उसे चैन न मिलता। चवन्ना अच्छा-खासा मजदूरी करता था, मेहनती था, पर पत्नी को लेकर उसका नजरिया बड़ा अजीब। हर बार पत्नी को ‘पैर की जूती’ कहकर ऐसी-वैसी मिसालें देता।

उस शाम तो हद ही हो गई। गाली शुरू होते ही पत्नी ने निकाली पैर की जूती और यों पटकी जमीन पर कि चवन्ना हकबका गया। पल भर को उसकी जुबान और दिमाग दोनों सुन्न हो गए।

चवन्ना कुछ सोचता, उसके पहले उसकी घरवाली ने चप्पल का नया जोड़ा निकाल पैर में पहना और पटककर बोली, ‘‘पढ़ना-लिखना जानती हूँ, मजूदरी पर जाऊँगी कल सवेरे से। ये लो तुम्हारी थाली, तसल्ली से भरपेट खाओ।’’

चवन्ना सिकुड़ गया, उसके जूते की जोड़ी पर पल भर में एक मकड़ी जाला बुनने लगी थी।

दुर्गेश, पुष्कर रोड़, कोटड़ा,
अजमेर- ३०५००४, राजस्थान

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