गाय और शेर के बच्चे

गाय और शेर के बच्चे

जंगल में मीनू नाम की गाय रेनू शेरनी के घर के बगल में रहती थी। रेनू हमेशा मीनू को मारकर खाने की फिराक में रहती थी। मीनू से रेनू का कई बार मुकाबला हो चुका था, मगर हर बार की लड़ाई में मीनू की ही जीत होती रही।

एक बार रेनू ने तीन बच्चों को एक साथ जन्म दिया। तीनों बच्चे बहुत ही प्यारे थे।

रेनू के बच्चे जब थोड़े बड़े हो गए तो तीनों खेलते-कूदते मीनू के पास पहुँच जाते और घंटों मीनू के साथ खेलकर वापस घर लौट आते।

एक शाम को रेनू शिकार करके जब घर नहीं लौटी तो रेनू के तीनों बच्चे अपनी माँ के लिए रोने लगे।

रेनू के बच्चों का रोना सुनकर मीनू दौड़ी-दौड़ी वहाँ आई और रेनू  के तीनों बच्चों से पूछा, ‘‘तुम सब रो क्यों रहे हो?’’

‘‘मीनू आंटी! माँ अभी तक शिकार लेकर घर नहीं आई। दिन भी ढल गया। पता नहीं माँ कहाँ होगी। हम तीनों अपनी माँ के लिए रो रहे हैं। हमें भूख लगी है। मीनू आंटी, तुम मेरी माँ को ढूँढ़कर लाओ न!’’

‘‘बच्चो, तुम सब मेरा दूध पीकर आराम करो। फिर मैं तुम्हारी माँ का पता लगाने जंगल में जाऊँगी।’’ रेनू के तीनों बच्चे मीनू का दूध पीने लगे। भरपेट दूध पीने के बाद रेनू के तीनों बच्चे मीनू बोले, ‘‘आंटीजी, आपको माँ जंगल में जहाँ भी मिले, उसे अपने साथ जरूर लेकर आना।’’

रेनू के बच्चों की बात सुनकर मीनू बोली, ‘‘बच्चो, अब तुम सब घर में जाकर आराम करो। मैं अभी गई और अभी आई।’’ इतना कहकर मीनू रेनू शेरनी का पता लगाने जंगल में चली गई।

जंगल में कुछ दूर जाने के बाद रास्ते में मीनू को सोनू भालू मिल गया।

मीनू सोनू को रोककर पूछने लगी, ‘‘सोनू भाई, तुमने जंगल में कहीं रेनू शेरनी को देखा है, मैं उसी को ढूँढ़ने घर से निकली हूँ।’’

‘‘मीनू! रेनू तो शिकारियों के पिंजड़े में कैद पड़ी है। वह सामनेवाले बाग में है। जाओ, तुम भी जाकर देख आओ।’’ इतना कहकर सोनू अपने घर चल दिया।

बाग में पहुँचकर मीनू ने देखा कि रेनू सचमुच शिकारियों के पिंजड़े में कैद पड़ी रो रही है।

अपनी ओर मीनू को आते देखकर रेनू बोल पड़ी, ‘‘मीनू, तुम मुझे बचा लो, वरना मेरे तीनों बच्चे भूख-प्यास से तड़प-तड़पकर मर जाएँगे।’’

मीनू ने देखा कि चार की संख्या में शिकारी पिंजड़े के पास बंदूक लिये बैठे हैं।

मीनू किसी तरह छुपते हुए रेनू के पास पहुँचकर बोली, ‘‘रेनू, तू अपने बच्चों की चिंता छोड़ दे। मेरे रहते तुम्हारे बच्चे कभी भूखे नहीं मरेंगे। तुम थोड़ा हिम्मत से काम लो। मैं यहाँ से कहीं नही जाऊँगी। मैं सामनेवाले पेड़ों की आड़ में छुपकर खड़ी रहूँगी। रात में जब सारे शिकारी अपने कैंप में सोने चले जाएँगे, तब मैं तुम्हारे पास आकर पिंजड़े का दरवाजा खोलकर तुम्हें बाहर निकाल लूँगी।’’

रात में जब सब शिकारी अपने कैंप में सोने चले गए, तब मीनू पेड़ों की आड़ से बाहर आकर अपने सींग से पिंजड़े में लगा ताला तोड़कर और पिंजड़े का फाटक खोलकर बोली, ‘‘रेनू, अब तुम पिंजड़े से बाहर निकल आओ और जल्दी से यहाँ से भाग चलो। अगर शिकारी जाग गए तो जान से हाथ धोना पड़ेगा।’’

पिंजड़े से बाहर आकर रेनू मीनू से बोली, ‘‘मीनू, मैं अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हूँ। आज तुमने मेरी जान बचाकर मुझ पर जो अहसान किया है, उसे मैं जिंदगी भर नहीं भूलूँगी।’’ मीनू और रेनू आपस में बातें करती हुई अपने-अपने घर की ओर चल पड़ीं।

उस दिन के बाद रेनू और मीनू एक-दूसरे की सच्ची सहेली बनकर साथ-साथ रहने लगीं।

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