द कॉमेडी ऑफ एरर्स

साइरेकस और एफेसस—दो परस्पर पड़ोसी देश थे। लेकिन अनेक मतभेदों के कारण दोनों देशों के राजा कट्टर शत्रु थे। किसी एक देश का नागरिक दूसरे देश में प्रविष्ट न हो, इसके लिए उन्होंने बड़ा सख्त कानून लागू कर रखा था। इसके अंतर्गत यदि साइरेकस का कोई नागरिक एफेसस की सीमा में मिल जाता था तो उसे एक हजार रुपए का जुर्माना भरना पड़ता था। जुर्माना न भरने की स्थिति में उस नागरिक का सिर काट दिया जाता था। इसलिए लोग सीमा पार करते हुए डरते थे। लेकिन जो इस कानून को नहीं जानते थे, उन्हें इसका दंड भुगतना पड़ता था।

साइरेकस में एजियन नामक एक व्यापारी रहता था। एक बार वह एफेसस में घूमते हुए पकड़ा गया। एफेसस के कानून के अनुसार उसे जुर्माना भरना था—लेकिन उसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं था। अतः अंतिम निर्णय के लिए उसे राजा के सामने पेश किया गया।

“महाराज, यह व्यक्ति साइरेकस का रहनेवाला है। इसे हमने महल के पास पकड़ा है। परंतु जुर्माना भरने के लिए इसके पास कुछ नहीं है। अब आप ही बताएँ, इसे क्या दंड देना है?” नगर कोतवाल ने सिर झुकाकर प्रश्न किया।

राजा ने एजियन को संबोधित करते हुए पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?”

“एजियन।” उसने सपाट स्वर में कहा।

“तुम पर लगाए गए आरोप सही हैं? क्या तुम नहीं जानते थे कि साइरेकस के लोगों पर एफेसस में आने की सख्त पाबंदी है?” राजा ने पुनः प्रश्न किया।

“जी हाँ। मुझे यहाँ के कानून के बारे में पता था।” वह निडर होकर बोला।

“फिर भी तुमने ऐसा अपराध किया? एजियन, कानून के अनुसार इस अपराध के लिए तुम या तो जुर्माना भरो या फिर मरने के लिए तैयार हो जाओ।” राजा ने अपना निर्णय सुना दिया।

व्यापारी करुण स्वर में बोला, “महाराज, जितनी जल्दी हो सके, आप मुझे मृत्युदंड दे दें, जिससे मैं सदा के लिए इस दुःखी जीवन को त्याग सकूँ। मैं अब और जीना नहीं चाहता।”

एजियन की बात सुनकर राजा आश्चर्य से भर उठा। आज तक उसके सामने जितने भी अपराधी आए थे, सभी ने कोई-न-कोई बहाना बनाकर दंड न देने की प्रार्थना की थी। लेकिन यह पहला व्यक्ति था, जो अपने मुँह से दंड देने की बात कर रहा था। उसकी आँखों में दूर-दूर तक भय का नामोनिशान नहीं था। राजा आश्चर्य प्रकट करते हुए बोला, “एजियन, ऐसी कौन सी बात है जिसके कारण तुम मौत को भी स्वीकार करने से पीछे नहीं हट रहे? मुझे बताओ, मैं तुम्हारे बारे में सबकुछ जानना चाहता हूँ।”

“महाराज, आप मेरे बारे में जानकर क्या करेंगे? मेरी कहानी इतनी दुःख भरी है कि उसे सुनकर आपका मन भी काँप उठेगा। इसलिए बिना विलंब किए मुझे दंडित करें।” एजियन दुःखी स्वर में बोला।

अब तो राजा के मन में उसके बारे में जानने की इच्छा और भी बलवती हो उठी। उसने दरबारियों की ओर देखा। वे भी उसके बारे में जानने के लिए उत्सुक हो रहे थे। उन्होंने पहली बार ऐसा निडर व्यक्ति देखा था, जो स्वयं मृत्यु माँग रहा था। अतः राजा पुनः बोला, “एजियन, तुम निस्संकोच अपनी बात कहो। तुम्हारी कहानी सुने बिना हम तुम्हें कदापि दंडित नहीं कर सकते।”

तब एजियन अपनी कहानी सुनाने लगा—

एजियन के पिता साइरेकस के एक धनी व्यापारी थे। उनका व्यापार कई देशों में फैला था। उनकी मृत्यु के बाद एजियन ने उनका सारा व्यापार सँभाल लिया। एक बार व्यापार के सिलसिले में उसे विदेश जाने का अवसर प्राप्त हुआ। उसने अपनी पत्नी को साथ लिया और माल से भरे जहाज के साथ अपिडैमनम नामक नगर में पहुँच गया। वह नगर उसे खूब रास आया। कुछ ही दिनों में उसका सारा माल बिक गया और उसके पास खूब धन जमा हो गया। उसने वापस लौटने का विचार त्याग दिया और पत्नी के साथ वहीं रहने लगा।

उसकी पत्नी गर्भवती थी। कुछ दिनों बाद उसने दो जुड़वाँ बेटों को जन्म दिया। दोनों बच्चे रंग-रूप और आकार में बिलकुल एक जैसे थे। उनमें अंतर करना एजियन और उसकी पत्नी के लिए भी बहुत कठिन था। उनके पड़ोस में एक गरीब स्त्री रहती थी। जिस दिन एजियन के घर पुत्रों का जन्म हुआ, उसी दिन उसने भी एक साथ दो पुत्रों को जन्म दिया। उसके पुत्रा भी आकार और रंग-रूप में एक समान थे।

वह स्त्री इतनी निर्धन थी कि पुत्रों को खिलाने और पालने के लिए उसके पास कुछ नहीं था। उसका स्वयं का गुजारा बहुत मुश्किल से हो रहा था। ऐसे में उनका पालन-पोषण उसके लिए असंभव था। इसलिए उसने एजियन से प्रार्थना की कि वह उसके पुत्रों को गोद ले ले। एजियन की पत्नी का मन पिघल गया—उसके आग्रह पर उसने गरीब स्त्री के पुत्रा गोद ले लिये। एजियन ने अपने दोनों बेटों का एक ही नाम रखा था, ‘एंटिफोलस’। गोद लिये पुत्रों का भी उसने एक ही नाम रखा। वह उन्हें ‘ड्रोमियो’ कहकर पुकारता था। इस प्रकार उसके पास चार शिशु हो गए थे।

एक बार व्यापार के सिलसिले में एजियन को दूसरे देश जाने का अवसर मिला। वह पत्नी और चारों बच्चों से बहुत प्रेम करता था। लंबे समय उनके बिना रहना उसके लिए असंभव था, इसलिए उसने उन्हें भी साथ ले लिया और जहाज पर सवार होकर दूसरे देश को चल पड़ा। कुछ महीनों की यात्रा के बाद उसे किनारा दिखाई देने लगा। ‘एक-दो दिन के बाद हम किनारे पर होंगे। उसके बाद जहाज का सारा माल बेचकर हम घर लौट जाएँगे।’ यह सोचकर एजियन मन-ही-मन प्रसन्न हो रहा था।

लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। उसी रात समुद्र में भयंकर तूफान आ गया। ऊँची उठती लहरें जहाज को निगल जाने के लिए बेचैन हो उठीं। एक छोटा सा जहाज कब तक उनका सामना कर सकता था। देखते-ही-देखते उसका एक हिस्सा टूट गया। उसमें तेजी से पानी भरने लगा। यात्रा समझ चुके थे कि जहाज कभी भी डूब सकता है, इसलिए जान बचाने के लिए वे छोटी-छोटी नावें लेकर पानी में उतर गए।

जहाज में सभी अकेले सपफर कर रहे थे, इसलिए उन्होंने पीछे मुड़कर देखना जरूरी नहीं समझा। केवल एजियन अपने परिवार के साथ पीछे रह गया। उसने जल्दी से लकड़ी के दो-तीन फट्टों को जोड़कर दो नावें तैयार कीं। तत्पश्चात् उसने एक नाव में अपनी पत्नी, एक एंटिफोलस और एक ड्रोमियो को बिठा दिया। दूसरी नाव में वह शेष दोनों बच्चों को लेकर सवार हो गया।

कुछ दूरी तक दोनों नावें साथ-साथ तैरती रहीं। परंतु धीरे-धीरे जल की तेज धाराओं के कारण वे विपरीत दिशाओं की ओर बहते हुए दूर निकल गईं। तभी एजियन को एक नाव दिखाई दी। उसमें सवार मल्लाहों ने उसकी पत्नी और बच्चों को अपनी नाव में चढ़ा लिया। उन्हें सुरक्षित देखकर एजियन के चेहरे पर असीम शांति दिखाई देने लगी। कुछ देर बाद एक दूसरी नाव ने उसे और उसके बच्चों को भी बचा लिया था। परंतु उस दिन के बाद से वे एक-दूसरे से बिछुड़ गए। उसने अपनी पत्नी और बच्चों को ढूँढ़ने का बहुत प्रयास किया, लेकिन उनका कुछ पता नहीं चला।

थक-हारकर एजियन ने उनके मिलने की आशा छोड़ दी और अपना सारा ध्यान दोनों बेटों पर केंद्रित कर लिया। अब केवल वे ही उसके परिवार थे।

समय बीतता गया—एंटिफोलस और ड्रोमियो बड़े हो गए। एक बार एंटिफोलस ने पिता से अपनी माता के बारे में पूछा। एजियन उन्हें अतीत में घटी घटना की जानकारी नहीं देना चाहता था। लेकिन बार-बार पूछे जाने पर अंततः उसे सारी बात बताई। उसी दिन से एंटिफोलस ने अपनी माता और भाइयों को ढूँढ़ने का निश्चय कर लिया। वह जोश में भरकर बोला, “पिताजी, जब तक मैं अपनी माँ और भाइयों को ढूँढ़ नहीं लेता, मेरे मन को शांति नहीं मिलेगी। वे जहाँ भी होंगे, मैं उन्हें ढूँढ़कर रहूँगा। आप मुझे आशीर्वाद दें कि मैं इस कार्य में सफल हो सकूँ।”

एजियन अपनी पत्नी और दो बच्चों को पहले खो चुका था। उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह बेटों को अपने से दूर कर सके। परंतु एंटिफोलस जिद पर अड़ गया। अंततः विवश होकर एजियन को अनुमति देनी पड़ी। दूसरे ही दिन वह ड्रोमियो को साथ लेकर उन्हें ढूँढ़ने निकल पड़ा। दिन गुजरते रहे। एजियन उनके लौटने की प्रतीक्षा कर रहा था।

लेकिन अनेक वर्ष बीत जाने के बाद भी वे नहीं लौटे। एजियन का मन किसी अनहोनी की आशंका से काँप उठता था। उससे नहीं रहा गया तो वह भी बेटों को ढूँढ़ने निकल पड़ा। उन्हें खोजते-खोजते वह एफेसस नगर में पहुँचा, जहाँ सिपाहियों ने उसे पकड़कर राजा के समक्ष पहुँचा दिया था।

एजियन की कहानी सुनकर राजा की आँखों से आँसू छलक आए। दरबार में उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति भाव-विह्वल होकर उसे ही देख रहा था। राजा स्वयं को नियंत्रित करते हुए बोला, “एजियन, मुझे दुःख है कि भाग्य ने तुम्हारा सबकुछ छीन लिया। लेकिन ईश्वर क्या करना चाहता है, इसे हम कभी नहीं समझ सकते। मैं उससे प्रार्थना करता हूँ कि तुम्हें तुम्हारा परिवार शीघ्र ही मिल जाए। एजियन, यद्यपि मैं कानून को नहीं बदल सकता, परंतु तुम्हें एक दिन की मोहलत अवश्य दे सकता हूँ। इस एक दिन में तुम जुर्माने का धन जुटाकर जमा करा दो। उसके बाद मैं तुम्हें स्वतंत्र कर दूँगा।”

राजा के इस निर्णय से एजियन पर कोई असर नहीं हुआ था। यह शहर उसके लिए बिलकुल अनजाना था। एक दिन तो क्या, वह एक महीने में भी एक हजार रुपए एकत्रित नहीं कर सकता था। यदि कोई उसे आवश्यक धनराशि दे देता तो भी उसे अपना जीवन व्यर्थ प्रतीत हो रहा था। इसलिए इस दिन में उसने धन एकत्रित करने की अपेक्षा अपने पुत्रों को ढूँढ़ना अधिक उचित समझा। वह महल से बाजार की ओर आ निकला। पुत्रों को ढूँढ़ने की यह उसकी अंतिम कोशिश थी। इसलिए वह अपना पूरा जोर लगा देना चाहता था।

उधर, वर्षों पूर्व एजियन की पत्नी और पुत्रों को बचाकर मल्लाह एफेसस शहर में ले आए थे। वहाँ एक दयालु और परोपकारी धनवान ने बालकों को गोद ले लिया। उसने पुत्रों की तरह उनका पालन-पोषण किया, खूब पढ़ाया-लिखाया और उनकी सुख-सुविधा का पूरा ध्यान रखा। युवा होने पर अपनी योग्यता के कारण शीघ्र ही वे सेना में ऊँचे-ऊँचे पदों पर नियुक्त हो गए। फ‌िर एंटिफोलस ने वहीं की एक सुंदर और कुलीन लड़की के साथ विवाह कर लिया। इस प्रकार दोनों भाई एफेसस में ही सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे थे। उनके पिता और भाई जीवित हैं, इस बात से वे पूरी तरह अनजान थे।

संयोगवश जिस दिन एजियन को बंदी बनाया गया, उसी दिन छोटा एंटिफोलस और ड्रोमियो भी भटकते-भटकते एफेसस पहुँच गए। शहर में प्रवेश करते ही उन्होंने सुना कि एक व्यक्ति को एफेसस में गैर-कानूनी ढंग से प्रवेश करने के कारण पकड़ा गया है। लेकिन उन्होंने इसकी कल्पना तक नहीं की थी कि वह व्यक्ति उनका पिता होगा।

कुछ दिन वहाँ ठहरने का निश्चय कर वे एक सराय में पहुँचे। सराय के मालिक ने उनका परिचय पूछा तो उन्होंने स्वयं को उसी शहर का नागरिक बताया। उसने रहने के लिए उन्हें एक कमरा दे दिया। कुछ देर विश्राम करने के बाद एंटिफोलस ने ड्रोमियो को आवश्यक वस्तुएँ खरीदने बाजार भेजा। उसके बाद शहर की जानकारी पाने के लिए वह भी सराय से निकल पड़ा।

तभी एंटिफोलस को ड्रोमियो दिखाई दिया। वह तेज-तेज चलता हुआ उसकी ओर आ रहा था। एंटिफोलस सोच में पड़ गया कि उसे बाजार गए अभी थोड़ी देर हुई है, यह इतनी जल्दी कैसे लौट आया? उसने ड्रोमियो के थैले की ओर देखा, परंतु वह खाली हाथ था। यह देखकर वह कुद्ध हो गया।

लेकिन इससे पहले कि वह उसे डाँटता, ड्रोमियो बड़े कोमल स्वर में बोला, “कप्तान साहब, आप यहाँ क्या कर रहे हैं? चलिए, घर चलिए। आपकी पत्नी भोजन के लिए आपकी प्रतीक्षा कर रही हैं।”

उसकी बात सुनकर एंटिफोलस चौंक पड़ा, फ‌िर गुस्से से भरकर बोला, “ड्रोमियो, तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है! ये कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हो? मेरा विवाह ही नहीं हुआ तो पत्नी कहाँ से आ गई? ड्रोमियो, यह हँसी-मजाक का समय नहीं है। मैंने तुम्हें सामान लाने भेजा था, खाली हाथ क्यों लौट आए?”

इस बार ड्रोमियो चौंकते हुए बोला, “मैं भला आपसे मजाक क्यों करूँगा? आपकी पत्नी भोजन के लिए बुला रही हैं। इसमें मजाक कहाँ से आ गया। आप किस सामान की बात कर रहे हैं? आपने कौन सा सामान लाने के लिए कहा था?”

“अच्छा, अब तुम्हें यह भी याद नहीं कि मैंने तुम्हें क्या लाने के लिए कहा था? ड्रोमियो, बहुत मजाक हो गया। अब चुपचाप जाकर अपना काम निपटाओ। और यह बार-बार पत्नी-पत्नी मत चिल्लाओ। मेरी कोई पत्नी नहीं है।” एंटिफोलस ने उसे झिड़कते हुए कहा।

वास्तव में वह बड़ा ड्रोमियो था, जो छोटे एंटिफोलस को बड़ा एंटिफोलस समझ रहा था। इधर, एंटिफोलस बड़े ड्रोमियो को छोटा ड्रोमियो समझकर उसे डाँट रहा था। इस प्रकार दोनों एक-दूसरे कोे गलत समझ बैठे।

एंटिफोलस का अजीब व्यवहार देखकर ड्रोमियो ने सोचा कि अवश्य कप्तान साहब अपनी पत्नी से लड़कर आए हैं, इसलिए गुस्से में हैं। लेकिन भाभी ने मुझे इन्हें लाने के लिए कहा है। इसलिए मैं इन्हें लेकर ही जाऊँगा। यही सोचकर वह उससे घर चलने की प्रार्थना करने लगा।

आखिरकार एंटिफोलस चिढ़ गया और बड़े ड्रोमियो का हाथ पकड़ते हुए बोला, “लगता है, तेरे दिमाग का इलाज करवाना पड़ेगा। यह जानते हुए भी कि अभी मेरा विवाह नहीं हुआ है, बार-बार पत्नी-पत्नी बोल रहा है। चल, पहले उस लड़की से मिलता हूँ, जिसे तू मेरी पत्नी बता रहा है। उसके बाद उसे सीधा करूँगा।”

यह कहकर वह ड्रोमियो के साथ चल पड़ा।

रास्ते में बाजार पड़ता था। उस समय वहाँ बहुत चहल-पहल थी। इस भीड़ में एंटिफोलस और ड्रोमियो अलग-अलग हो गए।  एंटिफोलस ने इधर-उधर देखा, लेकिन ड्रोमियो कहीं दिखाई नहीं दिया। तभी उससे छोटा ड्रोमियो टकरा गया। वह उसे डाँटते हुए बोला, “कहाँ चला गया था मुझे भीड़ में छोड़कर? चल, कहाँ लेकर चल रहा था तू मुझे?”

ड्रोमियो आँखें झपकाते हुए बोला, “भूल गए क्या? आपने ही तो सामान लाने बाजार भेजा था। और मैं आपको सराय में छो़डकर आया था। आप यहाँ क्या कर रहे हैं?”

एंटिफोलस का पारा उफपर जा पहुँचा, “ड्रोमियो, सराय से तुम मुझे यह कहकर लाए थे कि मेरी पत्नी खाने के लिए बुला रही है और यहाँ आकर कह रहे हो कि तुम यहाँ सामान खरीदने आए हो। मुझे ऐसा बेहूदा मजाक पसंद नहीं है।”

“मैंने कब कहा कि आपकी पत्नी बुला रही हैं? क्या मैं नहीं जानता कि अभी आप कुँवारे हैं। जरूर आपको कोई गलतफहमी हो गई है।” ड्रोमियो धीरे से बोला।

इधर ये दोनों बाजार में उलझे पड़े थे, उधर कप्तान की पत्नी अपने पति की प्रतीक्षा कर रही थी। ड्रोमियो अभी तक कप्तान साहब को लेकर नहीं आया था, यही सोचकर वह परेशान हो रही थी। जब समय अधिक हो गया तो वह स्वयं पति को घर लाने के लिए चल पड़ी।

बाजार में पहुँचते ही उसने छोटे एंटिफोलस और छोटे ड्रोमियो को परस्पर बातें करते हुए देखा। वह उसे कप्तान समझ बैठी और पास आकर बोली, “आप यहाँ क्या रहे हैं? मैंने आपको भोजन के लिए बुलाया था। लेकिन लगता है, आप कुछ ज्यादा ही नाराज हैं, इसलिए बुलाने पर भी नहीं आए।”

एक युवती के मुख से अपने लिए पति शब्द सुनकर एंटिफोलस चौंक पड़ा। उस समय आसपास खड़े लोग उसी ओर देख रहे थे। एक अनजान युवती उसे पति पुकारे, यह उसके लिए असहनीय था। वह क्रोध से भड़क उठा और तमकते हुए बोला, “कौन हो तुम, जो मुझे बार-बार पति कहकर संबोधित कर रही हो? मेरी कोई पत्नी नहीं है।”

युवती पल भर के लिए हक्की-बक्की रह गई। फ‌िर संयत होते हुए बोली, “आप चाहे कुछ भी कहें, परंतु इस सच को नहीं बदल सकते कि आप मेरे पति हैं। इस प्रकार बीच बाजार में झगड़ना उचित नहीं है। अच्छा यही होगा कि आप मेरे साथ घर चलें। वहीं चलकर हम शांति से बात करेंगे। चलो ड्रोमियो, तुम्हारी पत्नी भी तुम्हारा इंतजार कर रही है।”

एंटिफोलस कुछ समझ नहीं पा रहा था। वह सिर खुजलाते हुए सोचने लगा कि ‘परदेश में वह ब़डी विकट स्थिति में फँस गया है। यह युवती स्वयं को उसकी पत्नी बता रही है और ड्रोमियो को भी उसकी पत्नी के पास चलने को कह रही है। मुझे किसी तरह इस स्त्रा से स्वयं को बचाना होगा।’

इससे पहले कि वह कुछ कहे, पास खड़ा एक आदमी बोल पड़ा, “साहब, क्यों घर की बात बाजार में उछाल रहे हैं? अगर आपकी पत्नी से कोई गलती हो गई हो तो घर जाकर उसे समझा दें। ऐसे नाराज होकर उसे अपशब्द कहना आप जैसे पढ़े-लिखे व्यक्ति को शोभा नहीं देता।”

कुछ और लोगों ने भी उसकी बात का समर्थन किया।

स्थिति और विकट हो गई थी। अभी तक तो केवल युवती ही उसके पीछे पड़ी थी, विंफतु अब राह चलते लोग भी उसकी बात का समर्थन कर रहे थे। एंटिफोलस समझ गया कि यदि वह युवती के साथ नहीं गया तो मामला बिगड़ सकता है। वैसे भी वह परदेसी है। कहीं लेने के देने न पड़ जाएँ, यह सोचकर उसने युवती के साथ जाने का मन बना लिया।

युवती ने उसका हाथ पकड़ा और खींचते हुए घर की ओर चल पड़ी। एंटिफोलस भारी कदमों से उसके पीछे चल रहा था। ड्रोमियो भी उनके साथ था।

घर पहुँचकर युवती ने एंटिफोलस को प्रेम से एक कुरसी पर बिठाया और ड्रोमियो से बोली, “जाओ, तुम भी जाकर खाना खा लो। तुम्हारी पत्नी कब से भूखी-प्यासी बैठी तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है।”

यह कहकर वह एंटिफोलस के पास आकर बैठ गई और प्रेम भरी बातें करते हुए अपने हाथों से उसे खाना खिलाने लगी। वह अनमने मन से खाने का कौर गले से नीचे उतारने लगा।

उधर, ड्रोमियो जैसे ही रसोईघर में पहुँचा, एक नौकरानी ‘स्वामी, स्वामी’ कहकर उससे लिपट गई। छोटा ड्रोमियो छिटककर दूर ख़डा हो गया। डर से उसकी साँसें तेज-तेज चलने लगीं। सारा माजरा उसकी समझ से बाहर था। नौकरानी आश्चर्य से बोली, “आज तुम्हें क्या हो गया है? तुम ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हो? मेरे लिपटने से तुम ऐसे छिटके जैसे किसी दूसरे की पत्नी को गले से लगाया हो। चलो, अब चलकर खाना खा लो”

बाहर एंटिफोलस चुपचाप खाना खा रहा था, इसलिए उसे भी भोजन करने में कोई आपत्ति नहीं थी। वह आसन जमाकर बैठ गया और लगा भोजन करने।

इतनी देर में ब़डा एंटिफोलस और ब़डा ड्रोमियो घर लौट आए तथा दरवाजा खटखटाने लगे। परंतु किसी ने दरवाजा नहीं खोला। बहुत देर तक बाहर खड़े रहने के बाद ब़डा एंटिफोलस बोला, “लगता है, घर देर से आने के कारण बीवियाँ हमसे नाराज हो गई हैं। इसलिए उन्हें मनाने के लिए हमें कुछ उपहार ले आने चाहिए।”

ड्रोमियो ने उसकी बात का समर्थन किया और फिर वे दोनों वापस बाजार की ओर चल दिए।

इधर, भोजन करने के बाद छोटा एंटिफोलस और ड्रोमियो वहाँ से निकल भागने की बात सोचने लगे। थोड़ी देर बाद जब दोनों स्त्रियाँ गहरी नींद में सो गईं तो वे धीरे से उठे और वहाँ से भाग निकले।

अभी छोटा एंटिफोलस कुछ ही दूर गया था कि मार्ग में उससे एक सुनार टकरा गया। वह मुसकराते हुए उसके पास आया और एक डिब्बा पकड़ाते हुए बोला, “लीजिए कप्तान साहब, अपनी अमानत सँभालिए। मैं इसे देने आपके घर जा रहा था, अच्छा हुआ कि आप यहीं मिल गए। यह रत्नजड़ित सोने का हार आपको पूरे शहर में कहीं नहीं मिलेगा। आप इस हार की कीमत दुकान पर ही भिजवा देना।” यह कहकर वह व्यक्ति चला गया।

एंटिफोलस हैरान-सा खड़ा हुआ था। बार-बार उसके दिमाग में सुबह से घटित होनेवाली घटनाएँ घूम रही थीं। वह इस शहर में पहली बार आया था, लेकिन हर कोई उसके साथ ऐसे व्यवहार कर रहा था मानो उसे वर्षों से जानता हो। सुनार भी बिना किसी जान-पहचान के उसे इतना कीमती हार सौंप गया था।

तभी वहाँ से एक बुढ़िया गुजरी। वह छोटे एंटिफोलस को आशीर्वाद देते हुए बोली, “बेटा, तुम्हारे ही कारण मेरा बेटा निर्दोष साबित होकर जेल से छूटा है। भगवान् तुम्हें लंबी उम्र दें।”

बुढ़िया के जाने के बाद वहाँ एक युवक आया और बड़े प्रेम से उसके साथ मिला। वह युवक भी उसके साथ परिचितों जैसा व्यवहार कर रहा था। तभी एक व्यक्ति ने आकर उसे अपने पुत्र की शादी का निमंत्रण-पत्र थमाया और परिवार सहित विवाह में आने के लिए कहा। एक अन्य व्यक्ति उसे मुहरों की थैली पकड़ाते हुए बोला, “कप्तान साहब, आपने वक्त पर मेरी सहायता कर मुझे उबार लिया। आज मैं जो कुछ हूँ, आपके कारण हूँ। यह लीजिए, अपना धन स्वीकार कीजिए।”

यह सब क्या हो रहा है, एंटिफोलस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। वास्तव में बड़ा एंटिफोलस इसी शहर में पढ़-लिखकर बड़ा हुआ था। इसलिए शहर के लगभग सभी व्यक्ति उसे अच्छी तरह से जानते थे। छोटा एंटिफोलस बिलकुल अपने भाई जैसा था। यही कारण था कि लोग उसे कप्तान साहब समझ रहे थे।

अभी वह कुछ ही कदम चला था कि एक ल़डकी उसके पास आकर लाड़ करते हुए बोली, “भैया! आपने मेरा हार बनवा दिया? लाओ, कहाँ है हार? मैं बड़ी बेसब्री से उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। ओह, तो इस डिब्बे में है मेरा हार।”

जैसे ही लड़की उसके हाथ से डिब्बा लेने लगी, एंटिफोलस गुस्से से बेकाबू हो गया। उसने उसका हाथ छिटक दिया और चीखते हुए बोला, “मैं कल ही इस शहर में आया हूँ और एक दिन में मेरे इतने रिश्तेदार पैदा हो गए! कोई खुद को मेरी पत्नी बताती है तो कोई बहन। सच-सच बताओ, कौन हो तुम? मुझे तो ऐसा लगता है कि तुम सब मिलकर मुझे ठग लेना चाहते हो।”

यह कहकर एंटिफोलस वहाँ से भाग खड़ा हुआ। लड़की ने सोचा कि किसी सदमे के कारण उसका भाई उसे नहीं पहचान पा रहा है। वह उसी समय तेजी से घर की ओर भागी। वहाँ पहुँचते ही उसने भाभी को रोते हुए बताया, “भाभी, भैया पागल हो गए हैं। उन्होंने मुझे पहचानने से इनकार कर दिया।”

“तुम यह क्या कह रही हो? कहाँ मिले तुम्हें कप्तान साहब? शायद तुम ठीक कह रही हो। उन्होंने मुझे भी पहचानने से इनकार कर दिया। न जाने कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहे थे! बार-बार कह रहे थे कि मैं शहर में नया आया हूँ, तुम मुझे फँसाने की कोशिश कर रही हो।” कप्तान की पत्नी दुःखी स्वर में बोली।

“भैया अभी-अभी बाजार की ओर गए हैं। आप जल्दी से जाकर उन्हें घर ले आएँ। कहीं पागलपन में वह कुछ उलटा-सीधा न कर बैठें।”

कप्तान की पत्नी उसी समय बाजार की ओर दौड़ पड़ी। उस समय बड़ा एंटिफोलस उपहार खरीदने के लिए सुनार की दुकान पर पहुँचा और हार दिखाने के लिए कहा। सुनार हँसते हुए बोला, “कप्तान साहब, लगता है, आप आजकल कुछ ज्यादा खरीदारी कर रहे हैं। मैं आपको अभी हार दिखाता हूँ, परंतु पहले पिछला उधार चुका देते तो ठीक रहता।”

“पिछला उधार। किस उधार की बात कर रहे हो? मैंने कौन सी चीज तुमसे उधार ली है?” कप्तान ने आश्चर्य में भरकर पूछा।

“इतनी जल्दी भूल गए? थोड़ी देर पहले ही तो मैंने आपको रत्नज‌िड़त सोने का हार थमाया था।”

“थोड़ी देर पहले! क्या बात कह रहे हो तुम? आज यह हमारी पहली मुलाकात है। तुमने जरूर किसी और को हार पकड़ा दिया होगा। मैं आज सुबह इस ओर आया ही नहीं।” कप्तान ने पुनः कहा।

“कप्तान साहब, ऐसा मजाक अच्छा नहीं है। मैंने खुद आपको वह हार दिया था। मेरी आँखें धोखा नहीं खा सकतीं।” इस बार सुनार उत्तेजित हो गया था।

धीरे-धीरे दोनों का झगड़ा बढ़ता गया। अंततः बात थाने तक पहुँची। थानेदार ने दोनों को जेल में डाल दिया।

उधर, कप्तान की पत्नी उसे खोजती हुई सुनार की दुकान पर पहुँची। वहाँ उसे पता चला कि उसके पति को पुलिस पकड़कर ले गई है। वह उसी क्षण थाने जा पहुँची और थानेदार से बोली, “मेरे पति बिलकुल निर्दोष हैं। वे कोई अपराध नहीं कर सकते। अवश्य अनजाने में उनसे कोई भूल हो गई होगी। वैसे भी आज सुबह से वे अजीब सा व्यवहार कर रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे उन्हें पागलपन का दौरा पड़ा है। आप उन्हें छोड़ दें, जिससे मैं उनका इलाज करवा सकूँ।”

थानेदार को उसकी बातों पर विश्वास हो गया और उसने कप्तान को पागल समझकर छोड़ दिया।

घर आकर कप्तान की पत्नी ने नौकरों से कहा, “कप्तान साहब को इसी समय रस्सी और जंजीरों से बाँधकर कमरे में बंद कर दो। ये पागल हो गए हैं। मैं अभी डॉक्टर को बुलाकर इनका इलाज करवाती हूँ।”

एंटिफोलस चीख-चीखकर कहता रहा कि वह पागल नहीं है, लेकिन किसी ने उसकी एक न सुनी। उसे कमरे में बंद करके कप्तान की पत्नी डॉक्टर को लेने चली गई।

जब वह डॉक्टर को लेकर घर लौट रही थी तो बाजार में उसे छोटा एंटिफोलस दिखाई दिया। उसने समझा कि किसी तरह खुद को छुड़ाकर वह घर से भाग आया है।

“डॉक्टर साहब, वे रहे मेरे पति। वे रहे मेरे पति।” फिर वह उसे पुकारते हुए दौड़ पड़ी, “कप्तान साहब, कप्तान साहब!”

एंटिफोलस ने जब आवाज की दिशा में देखा तो उसे कप्तान की पत्नी दिखाई दी। उसे अपनी ओर आते देखकर उसके होश उड़ गए। वह समझ गया कि यह स्त्री फिर उसे जबरदस्ती अपने घर ले जाएगी। अतः उसने आव देखा न ताव, सिर पर पैर रखकर विपरीत दिशा की ओर भाग लिया।

उसे भागते देख कप्तान की पत्नी चिल्लाई, “पकड़ो उन्हें! भगवान् के लिए पकड़ो उन्हें! वे पागल हैं।”

छोटा एंटिफोलस अपने लिए ‘पागल’ शब्द सुनकर घबरा गया। वह तेजी से भागता हुआ एक मंदिर में जा छिपा। मंदिर में एक पुजारिन रहती थी। एंटिफोलस ने उसे अपनी सारी कहानी संक्षेप में बताकर सहायता करने की प्रार्थना की। उसने यह भी बता दिया कि एक चालाक औरत जबरदस्ती उसे अपना पति बनाकर घर ले जाना चाहती है। वह पुजारिन के पैरों में गिर पड़ा और रोते हुए बोला, “माँ, इस दुष्ट औरत से मेरी रक्षा करो।”

‘माँ’ शब्द सुनते ही पुजारिन के मन में प्रेम और ममता का सागर उमड़ आया। उसने एंटिफोलस के सिर पर हाथ फेरा और स्नेह भरे स्वर में बोली, “डरो मत बेटे, वह तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी। तुम पासवाले कमरे में जाकर छिप जाओ। मैं सबकुछ सँभाल लूँगी।”

वह शीघ्रता से साथवाले कमरे में छिप गया। तभी मंदिर में कप्तान की पत्नी आई और हाँफते हुए बोली, “माँ, मेरे पति इसी ओर आए हैं। आपने उन्हें जरूर देखा होगा। कृपया बताएँ कि वे कहाँ हैं? उनकी मानसिक दशा ठीक नहीं है। मैं उन्हें घर ले जाना चाहती हूँ।”

पुजारिन उसे समझाते हुए बोली, “बेटी, वह तुम्हारा पति नहीं है। अवश्य तुम्हें कोई गलतफहमी हुई है। मैं उसे तुम्हारे हवाले कभी नहीं कर सकती। अच्छा यही होगा कि तुम यहाँ से चली जाओ।”

परंतु कप्तान की पत्नी अ़ड गई। बिना पति को लिये वह वहाँ से नहीं लौट सकती थी। उसने जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया। उसका रोना सुनकर वहाँ भीड़ लगने लगी। लोग दबी जुबान में तरह-तरह के सवाल करने लगे। इस प्रकार पूरे नगर में हड़कंप मच गया था।

उधर, राजा द्वारा एजियन को दी गई समय-सीमा समाप्त हो गई थी। उसने अभी तक जुर्माना नहीं दिया था, अतः राजा ने उसे फाँसी पर लटकाने का निश्चय कर लिया। लेकिन वहाँ का नियम था कि राजा फाँसीघर जाकर ही फाँसी देने की सजा सुनाता था। शहर का एकमात्र फाँसीघर उस मंदिर के पास ही बना हुआ था, जहाँ पुजारिन और कप्तान की पत्नी के बीच विवाद चल रहा था। जमा लोग इस तमाशे का आनंद ले रहे थे।

घर पर बड़ा एंटिफोलस भी नौकरों की आँखों में धूल झोंककर भाग निकला था। नौकर उसका पीछा कर रहे थे, अतः वह मंदिर के बाहर खड़ी भीड़ में जा छिपा। तभी कप्तान की पत्नी की नजर उस पर पड़ी। उसने उसे पकड़ लिया और प्रसन्न होकर बोली, “मुझे मेरे पति मिल गए हैं। मुझे मेरे पति मिल गए हैं।”

एंटिफोलस को बाहर देखकर पुजारिन भी आश्चर्यचकित रह गई। ‘उसने उसे कमरे में छिपाया था और बाहर आनेवाले रास्ते पर वह खड़ी थी। फिर वह बाहर कैसे आ गया?’ यह सोचकर उसका चेहरा पसीने से भर उठा। वह तेजी से अंदर गई और छोटे एंटिफोलस को लेकर बाहर आ गई।

उसे देखते ही आस-पास खड़े लोग स्तब्ध रह गए। कप्तान की पत्नी कभी अपने पति को देखती तो कभी पुजारिन के साथ खड़े एंटिफोलस को। उसका चेहरा घबराहट और आश्चर्य से भर गया था। दो अपरिचित व्यक्तियों के चेहरे, रंग-रूप और कद-काठी एक समान वैफसे हो सकती हैं? सभी इस रहस्य को जानने के लिए बेचैन हो रहे थे।

तभी राजा का काफ‌िला उस ओर आ निकला। सबसे आगे कैदी की वेशभूषा पहने एजियन चल रहा था। छोटा एंटिफोलस उसे देखते ही पहचान गया और दौड़कर उसके गले से लग गया। पुत्र को देखकर एजियन की आँखों से भी आँसू बहने लगे। बड़ा एंटिफोलस दूर खड़ा सब देख रहा था। चूँकि बचपन से उसने पिता को नहीं देखा था, इसलिए वह उसे नहीं पहचान सका।

पिता-पुत्र के इस मिलन को देखकर राजा सारी बात समझ गया। उसने कप्तान एंटिफोलस को बुलाया और उसे एजियन की सारी कहानी सुनाई। अब कप्तान एंटिफोलस भी भावुक हो उठा और आगे बढ़कर पिता के गले से लग गया। तभी पास खड़ी वृद्धा पुजारिन रोते हुए बोली, “स्वामी, आप कहाँ चले गए थे? आपके जाने के बाद मेरे पुत्र भी मुझसे दूर हो गए। मैं, आपकी अभागी पत्नी तभी से आपके वियोग में तड़प-तड़पकर दिन गुजार रही हूँ।”

इतने वर्षों बाद पत्नी को देखकर एजियन की खुशी का ठिकाना न रहा। तभी दोनों ड्रोमियो भी वहाँ आ गए। एजियन और उसकी पत्नी ने उन्हें भी प्यार से गले लगा लिया। इस प्रकार एजियन को उसकी पत्नी और चारों पुत्र एक साथ मिल गए। इस बीच कप्तान की पत्नी भी सारी बात समझ चुकी थी। उसने सास-ससुर के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। उनमें जो गलतफहमी हुई थी, वह दूर हो गई।

फिर कप्तान एंटिफोलस ने राजा से प्रार्थना की कि वह पूरा जुर्माना भरने को तैयार है, लेकिन उसके पिता को छोड़ दिया जाए। लेकिन राजा ने बिना जुर्माना लिये एजियन को मुक्त कर दिया। इसके बाद वह पूरा परिवार सुखपूर्वक एक साथ रहने लगा।

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