RNI NO - 62112/95
ISSN - 2455-1171
ग़ज़ल![]() हास्य कवि, ग़ज़लकार एवं कार्टूनिस्ट। ‘मुँड़ेरों पर चराग’ ग़ज़ल-संग्रह सहित अनेक पत्र-पत्रिकाओं में ग़ज़ल प्रकाशित।
वह सवालात मुझ पर उछाले गए चाहकर भी न जो मुझसे टाले गए था ये रोशन जहाँ, रोशनी उनसे थी वो गए, साथ उनके उजाले गए खत तो यों सैकड़ों मैंने उनको लिखे जो भी दिल से लिखे, वो सँभाले गए खार राहों में गैरों ने डाले मगर दोस्तों के इशारों पे डाले गए जग ने तारीफ जितनी भी मेरी सुनी दोष उतने ही मुझमें निकाले गए काम जब रखने लगा मैं काम से जिंदगी कटने लगी आराम से कल सभी वो जान जाएँगे जरूर आज जो अनजान मेरे नाम से बोलते हैं मुसकराकर झूठ जो डरते हैं हम उनके हर इल्जाम से छल-कपट फिर से वही करने लगा जो अभी लौटा है चारों धाम से ख्वाब में फिर वो मिलेंगे रात को है चमक आँखों में ‘कलकल’ शाम से ख्वाब में वो मुझे यूँ सताते रहे दूर जाते रहे, पास आते रहे इक सलीका अदाओं में उनकी रहा पेश हम भी शराफत से आते रहे थी कयामत की होंठों पे उनके हँसी कह सके हम न दिल की, हँसाते रहे इश्क में घर उजड़ते तो देखे बहुत बावजूद इसके हम दिल लगाते रहे जो लतीफों पे हँसते रहे गैर के वह मेरी बात पर मुँह बनाते रहे जब मुँड़ेरों पर चराग अपना जलाकर जाऊँगा ऐ हवा, औकात तेरी मैं बताकर जाऊँगा मेरी कीमत क्या है, मुझको ये पता भी तो चले दाँव पर इस बार मैं खुद को लगाकर जाऊँगा तोड़ ही डालेंगे फिर तो ये कफस को एक दिन आस्माँ जब इन परिंदों को दिखाकर जाऊँगा संग-दिल समझे न मुझको ये जमाना, इसलिए मैं जहाँ में दिल किसी से तो लगाकर जाऊँगा सिर्फ मेरे नाम से ही घर पहुँच जाएँगे खत शहरतें दुनिया में ‘कलकल’ इतनी पाकर जाऊँगा।
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मई 2022
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