नीले समंदर का देशथाईलैंड

नीले समंदर का देशथाईलैंड

यात्राएँ हमें पुनर्जीवित कर देती हैं। रोजमर्रा की आपाधापी से मुक्त होकर कुछ अलग करना मन को खूब भाता है। नई जगह, नए लोग और नया परिवेश। अच्छा लगता है, जब उनकी जीवन शैली की तुलना हम खुद से करने लगते हैं और किसी भी समानता पर उल्लसित होते रहते हैं। इस बार यात्रा की भूमि विदेश थी। हम सात लोगों का समूह क्रिसमस मनाने बैंकॉक पहुँच गया, थाईलैंड की राजधानी।

गजब का आकर्षण है चकाचौंध कर देने वाले इस अंतरराष्ट्रीय महत्त्व के शहर में। व्यापार और पर्यटन के क्षेत्र में तेजी से उभरते हुए बैंकॉक में एक ओर तो शांति की तलाश में लोग बुद्ध की शरण में आने को लालायित रहते हैं तो दूसरी ओर भौतिकता के सागर में डूबकर शराब और शबाब का आनंद भी उठाने आते हैं। जीवन के विभिन्न पहलुओं का समावेश एक ही स्थान पर करना हो तो बैंकॉक आइए। इतिहास को टटोलकर देखें तो पता चलेगा, यह शहर कई बार आंतरिक और बाह्य‍ आक्रमणों में बिखरा और बना। आयुत्थया के प्राचीन क्षेत्र में जहाँ बैंकॉक के बनने की कहानी छिपी है, वहाँ के सोए हुए मुद्रा में बुद्ध के चेहरे का तेज आपको आमंत्रित करता प्रतीत होगा कि उनके शरण में जाओ, सारे जीवन का सार उन्हीं की आगोश में है। नए नगर के बसने के बाद भी लोग इस जगह को देखने आते हैं।

आयुत्थया बैंकॉक के उत्तर में मुख्य शहर से ८० किलोमीटर दूर है। यह पौराणिक ‘स्याम’ देश की राजधानी हुआ करता था, जो १३५० ईस्वी से अंतरराष्ट्रीय बंदरगाह के रूप कई देशों की अर्थव्यवस्था को निर्धारित करता था। १७६७ में बर्मा के आक्रमण के बाद यह उजड़ सा गया, जिसके अवशेष आज भी ऐतिहासिक धरोहर हैं। एक से एक विशालकाय मूर्तियाँ हैं यहाँ बुद्ध की, जिनके रख–रखाव में लगे बौद्ध भिक्षु आज भी भिक्षा माँगकर खाते हैं। यहीं पर एक ध्यान–योग सेंटर है, जहाँ पर हर उम्र के लोग ध्यान सीखने आते हैं। खोह की आकृति में स्फटिक की तरह दिखने वाली बुद्धा की आराम करती हुई वाली एक विशाल प्रतिमा है। यहाँ के शांत और रमणीक वातावरण में लोग दूर–दूर से ध्यान–योग करने आते हैं और संयम की जिंदगी जीते हैं। मेरे ग्रुप की एक सदस्या, जिन्हें ध्यान के क्षेत्र में विशेष पकड़ है, उन्होंने उस पवित्र स्थान में झाड़ू लगाकर श्रमदान भी दिया। बैंकॉक के दर्शनीय स्थानों में ग्रैंड पैलेस बहुत बड़े इलाके में फैला हुआ राजनिवास है, जो अठारहवीं सदी तक वहाँ के राजा का निवासस्थान था। आज भी इन दीवारों की कलाकृतियाँ देखने लायक हैं।

राजकीय कार्यों में अब इस महल का उपयोग होता है। साल के अनेक राजकीय उत्सवों में भी इस भवन का उपयोग होता है। आंतरिक और बाह्य‍ आक्रमणों में बुद्ध की प्रतिमाओं को खूब तोड़ा गया, जिनके अवशेष अब भी उसी अवस्था में पड़े हुए हैं। उन्हीं अवशेषों में एक मत्था मंदिर है, जहाँ पीपल की लटों के बीच बुद्ध का सिर अटका हुआ दिखता है। इन स्थानों की साज–सफाई अनुकरणीय है। हर मंदिर के पास साज–सज्जा, कपड़ों और पारंपरिक आभूषणों की दुकानें पर्यटकों को खूब लुभाती हैं। हमने फ्लोटिंग मार्केट का भी लुत्फ उठाया। पानी के बीच नावों में सजी दुकानें। खाने–पीने की तमाम सामग्रियाँ। समुद्री ‌िफश, क्रेब और लोब्स्टर की व्यंजनों में सबसे ज्यादा भीड़। बैंकॉक के चाइनीज मार्केट की रौनक देखते ही बनती है। जैसे भारत में मंदिरों में प्रवेश के पहले औरतें सिर पर पल्लू रख लेती हैं और जूते–चप्पल उतार दिए जाते हैं, वैसे ही यहाँ भी बुद्ध मंदिरों में जाने के पहले चप्पलें उतारकर लोग जाते हैं।

आधुनिकता का पर्याय है यह नगर, मगर आध्यात्मिक महत्त्व के स्थानों में पैंट या पतलून के साथ बदन ढके हुए वस्त्र ही पहनने होते हैं। इसके लिए आस–पास की दुकानों में सस्ते कपड़े मिल जाते हैं। अपने होटल के पास की दुकानों में नेपाली, बांग्ला देशी और बर्मीज लोगों की अनेक दुकानें थीं, वे बड़ी सहजता से हिंदी बोलते थे। उनके साथ बातें करके बड़ा अच्छा लगता था। एक और बात, शहर को साफ–सुथरा रखने में यहाँ के बाशिंदों का बहुत हाथ है। कहीं धूल का निशान नहीं मिलता था। प्रदूषण–मुक्त बैंकॉक शहर में मालिश (मसाज) धंधा खूब होता है। हर्बल, अरोमा, तेल और ना जाने कितने ही प्रकार के मसाज के साधन। दिन भर के थके पर्यटकों की इच्छा होती है कि वे सोने के पहले मसाज करवा लें। इसलिए देर रात तक इनके केंद्र खुले रहते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए मसाज के साथ देह–धंधा भी जुड़ा हुआ है, जिसका पता आपको मसाज सेंटर के सामने ग्राहकों के इंतजार में बैठी महिलाओं को देखकर लग जाएगा।

बैंकॉक में तीन दिन गुजारने के बाद हम लोग क्राबी चले आए। क्राबी में घुसते ही केकड़े की शानदार मूर्तियाँ समुद्र के किनारे आपको बुलाती सी प्रतीत होंगी। आओनांग समुद्र के किनारे के एक बेहतरीन होटल में हमारी बुकिंग थी, जहाँ से समुद्र की लहरें और मछली पकड़ने वालों की आवाजाही दिखती रहती थी। क्राबी में समुद्र की लहरों से कटकर बने पहाड़ों के विभिन्न आकार दिखते हैं, जो आकर्षण के केंद्र हैं। एक बड़े हिस्से में मछलियाँ, केकड़े और कछुए पालने का काम होता है। यहाँ के मछुआरे समुद्र तट के छोटे–छोटे सुराख से हाथ डालकर केकड़े के बच्चों को निकाल लेते हैं। क्राबी के चार द्वीपों का समूह खूब लुभाता है, जिनके नाम हैं—प्रणांग द्वीप, टुप द्वीप, चिकेन द्वीप और पोडा द्वीप। इनमें से पोडा आइलैंड रंगीन कोरल्स और रीफ मछली के लिए प्रसिद्ध हैं। टुप आइलैंड और चिकेन आइलैंड के बीच का छिछला समुद्र उन दोनों को जोड़ने का काम करता हैं, जहाँ पर्यटक पैदल ही दोनों द्वीपसमूहों तक आ–जा सकते हैं। नहाने के लिए यह सबसे उपयुक्त आइलैंड है। हमने भी यहाँ देर तक नहाने का आनंद उठाया। स्पीड–बोट से इनके सफर के दौरान संसार भर के पर्यटकों से मुलाकात हुई, जो घंटों समुद्र के किनारे के सफेद रेत में सन–बाथ का आनंद उठाते रहते हैं। शीशे के समान साफ पानी में स्नॉर्कलिंग का लुत्फ लिया जाता है। अच्छे तैराकों के लिए यह बहुत मनोरंजक होता है। खास बात थी कि हमारे समूह में तीन सदस्य तैराकी के विशेष ज्ञाता थे, जिन्होंने गहराई में जाकर रंगीन–सुंदर मछलियाँ देखने का विशेष लाभ उठाया।

सुबह से देर शाम तक के इस ट्रिप में खाने–पीने का इंतजाम पूरी तरह ट्रिप बनाने वाले की ओर से होता है। शाकाहारी और मांसाहारी, दोनों तरह के भोजन मिलते हैं। साथ में फल जिनमें अनन्नास और तरबूज बहुतायत में होते हैं। कोल्ड ड्रिंक्स और पानी की बोतलें भी बोट पर रखी होती हैं, जितना चाहे ले लो। धूप तीखी लगती है, पर समुद्र की ठंडी हवा इसके प्रभाव को कम कर देती है। जलवायु के अनुसार कई विचित्र प्रजाति के फूल–पत्ते देखने को मिलते हैं। ऑर्किड के फूल, जो हमारे देश में बहुत महँगे मिलते हैं, वो सड़कों के किनारे लगे हुए हैं और फूल से लदे हुए। क्राबी के नाइट मार्केट की शोभा देखते ही बनती है। जैसे–जैसे रात गहराती है, इसकी रौनक बढ़ती जाती है। डांस–म्यूजिक, पियानो, क्रैब और वाइन। बालू में चलने वाले जूतों की खूब बिक्री होती है। कुछ रेस्तराँ भारतीय खानों के लिए प्रसिद्ध हैं, जहाँ खचाखच भीड़ होती है। साउथ इंडियन डिशेज के रेस्तराँ थाई लोगों में भी लोकप्रिय हैं। एक खास बात, गाड़ियों की कतारें इतनी अनुशासित होती हैं कि कभी हॉर्न की आवाज नहीं आती है। एक कैब चालक ने बताया कि यहाँ बहुत सुंदर–सुंदर कैब्स हैं, करीबन चौंतीस कैब कंपनियाँ कार्यरत हैं।

तीन दिन क्राबी में रहने के बाद हम लोग सड़क मार्ग से छह घंटे तय करने के बाद थाईलैंड के बेहद खूबसूरत जगह फुकेत आ गए। रास्ते में मीठे नारियल–पानी हमारी पसंदीदा पेय रही। क्राबी से फुकेत के बीच हमें कई शिव मंदिर भी मिले, जिनसे पता चलता है कि अच्छी संख्या में यहाँ भारतीय बसे हुए हैं। फुकेत में होटल लॉजिंग के पहले हमने देवी माया की मंदिर का दर्शन किया। बुद्ध की माताश्री के रूप में इस स्थान का बहुत महत्त्व है। पहाड़ और समुद्र के बीच बसे इस स्थान में कई गुफाएँ हैं, जहाँ बौद्ध भिक्षुक योग-ध्यान करते हैं। बुद्ध की अनेक मूर्तियाँ भी हैं। इस पवित्र स्थान के बाद हम फुकेत के विशाल मछली–गृह में गए, जहाँ सुंदर रंग–बिरंगी मछलियों को पालने का काम होता है। समुद्री फिश और केकड़ों की अनेक प्रजातियाँ हैं। कई साल पुराने कछुए भी हैं। फुकेत प्राविंस की राजधानी फुकेत है।

सिमिलन द्वीप यहाँ का सबसे महत्त्वपूर्ण स्पॉट है, जिसके लिए क्रूज करनी होती है। हमारे क्रूज में जापान, स्वीट्जरलैंड और कोरिया के काफी पर्यटक थे। यहाँ भी समुद्र के बीचोबीच स्नॉर्कलिंग करवाए गए। पहाड़ों के विशिष्ट आकार खूब लुभाते हैं। एक–दो स्पॉट डॉल्फिन के लिए भी प्रसिद्ध हैं, पर वो अकसर नहीं दिखाई देती हैं। चार–पाँच छोटे–छोटे आइलैंड्स भी आते हैं। क्रूज की यात्रा भी मनोरंजक थी। नाचना–गाना, डाइनिंग और सोने के लिए लंबे गद्देदार बेंच सभी थे। आरामदायक सोफे से ऊपर नीले आकाश और नीचे नीले पानी को निहारना काफी रोमांचक लग रहा था। सबसे अच्छी बात, उस क्रूज का रसोइया भारतीय था—हिमाचली। उसने भारतीय स्वाद के अनुसार आलू–गोभी की सब्जी, पनीर और दालें वगैरह बनाईं। डूबते सूरज का नजारा देखने लायक होता है। पानी की हर परत के नीचे सूरज को समाते देखना अद्भुत था। सूरज का अस्त होना नई सुबह का संकेत होता है। जब आप प्रकृति के अलौकिक संसर्ग में होते हैं तो ज्ञान की दृष्टि से खुद को कितना बौना महसूस करते हैं, यह मैंने उस दिन जाना। प्रकृति से बड़ा कोई गुरु नहीं है। जीवन का सुख–दुःख सब छोटा जान पड़ेगा। पहाड़ियों से घिरे समुद्र के एक तरफ ब्रह्म‍ा, विष्णु और महेश का मंदिर होना इस बात का परिचायक था कि भारतीय ज्ञान और दर्शन का हर तरफ मान है। आखिर सम्राट् अशोक के बेटे और बेटी ने भारत से निकलकर ही तो सारे संसार में बौद्ध धर्म का प्रचार किया था।

सिमिलन से अपने होटल पहुँचकर हमने रात्रि–विश्राम किया। दूसरे दिन हमें डॉल्फिन शो, बिग बुद्धा और टाइगर किंगडम को देखने जाना था। डॉल्फिन शो अविस्मरणीय है। डॉल्फिन और मनुष्य के बीच का जीवंत संवाद यह बात मानने को मजबूर कर देता है कि जानवरों को हम मूक पशु समझने की भूल कभी ना करें। इन्हें आप जितना प्यार देंगे, ये उतना ही आपको चाहेंगे। आखिर प्यार के लिए तो स्पर्श और आँखें ही आवश्यक होते हैं, संवाद तो गौण होते हैं। डॉल्फिन के सर्कसनुमा कारनामे को हर किसी ने अपने कैमरे में बंद कर लिया। इसके बाद हम लोग बुद्धा की सबसे बड़ी प्रतिमा बिग बुद्धा देखने गए, जो एक ऊँची पहाड़ी पर अवस्थित है। सफेद संगमरमर से बनी यह प्रतिमा इतनी ऊँची है कि इसे देखने के लिए गरदन भी ऊँची करनी होती है। इस प्रतिमा के चारों ओर बौद्ध धर्म से जुड़ी अनेक वस्तुएँ और पुस्तकें बेची जाती हैं। कुछ समय इस पवित्र स्थल के छाँव में गुजारने और ध्यान करने के बाद हम टाइगर किंगडम के लिए निकल पड़े। यह स्थान शहर से दूर है। टाइगर सफारी की तरह साँप, हाथी और अन्य जानवरों के सफारी भी है। हमने टाइगर के राज्य में जाने का फैसला किया। छोटे–बड़े और मध्यम आकार के बाघों के साथ समय बिताने का अवसर यहाँ मिलता है, उन्हें छूने का भी। हमने भी मझोले कद वाले बाघों को छुआ और कुछ मिनट उनके पिंजरे में बिताया। डर भी लग रहा था, पर उनके मेंटर उनके साथ होते हैं। हमने मेंटर के इशारे पर उनकी पूँछ भी उठाई। यह भी एक अद्भुत अनुभव था।

फुकेत में भी हमने तीन दिन बिताए। हर महत्त्वपूर्ण स्थल को दिल से देखा और मन से जीया। सबसे अच्छी बात यह रही कि कभी भी यात्रा के दौरान थकावट नहीं हुई। कोलोस्सल वेकेशन नामक हॉलिडे पैकेज टूर बनाने वाली कंपनी ने उन सभी दर्शनीय स्थलों का टूर बनाया था, जो कम समय में देखा जा सके। वैसे तो बैंकॉक अपने पर्यटन स्थलों के लिए ही जाना जाता है, इसलिए सभी जगहों को कम समय में देखना भी नामुमकिन है। मगर हमने जितना भी देखा, वह अपने आप में ज्ञान का पिटारा था। बहुत कुछ देखा हमने, सीखा भी। एकल परिवारों में रहते हुए कहीं सामूहिकता में जीना न हम भूल जाएँ, एक–दूसरे की भावनाओं को समझने में चूक न जाएँ, इसलिए समूह में यात्रा करना भी जरूरी है। थाईलैंड के पर्यटक स्थलों में से यह तीन—बैंकॉक, क्राबी और फुकेत यात्रियों को सबसे ज्यादा लुभाते हैं। हमारे देश के सभी अंतरराष्ट्रीय हवाई-अड्डों से बैंकॉक जुड़ा हुआ है। फिर वहाँ से अन्य आंतरिक शहरों में जाने के लिए अनेक साधन हैं। 

डी.-15, सेक्टर-9, पी.ओ.-कोयलानगर,
जिला धनबाद-826005 (झारखंड)

दूरभाष : 9431320288

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