अखबार और आदमी

‘अरे! भाई, पढ़ने के पश्चात् अखबार रद्दी से हो जाते हैं।’

‘हाँ। कुछ-कुछ मेरा भी ऐसा ही मानना है।’

‘तो फिर पडोसी को आप अभी अखबार दे देते।’

‘काहे को दे देता अखबार, पडोसी को।’

‘पढ़ने को, और क्या?’

‘ना-ना’

‘क्या मतलब है आपका?’

‘मतलब कि मेरे ये पडोसी भी एकदम एक अखबार की मानिंद ही हैं।’

‘कैसे कैसे...मैं समझा नहीं।’

‘अखबार ले जाने के बाद वापस लौटाने की नीयत नहीं होती पडोसी की, समझे।’

‘तब तो उनके बारे में आपका आकलन-मूल्यांकन सही-सही लगता है।’

‘हाँ-हाँ, ऐसे पड़ाेसियों के वास्ते नजरिए में बदलाव अपन को जरूरी लगा था।’

लिहाजा, आदमी को समय रहते दुष्प्रवृत्तियों से छुटकारा पाना चाहिए।

साकेत नगर, ब्यावर-305901 (राज.)

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