RNI NO - 62112/95
ISSN - 2455-1171
E-mail: sahityaamritindia@gmail.com
बन तारक, गीत गातेमुझे बाँधने मुझे बाँधने आते हो अनंत सीमा में चुपचाप क्या भिन्न कर पाओगे चाहे जिस विधि लो नाप। तुषार घुले पथ पर आते पुलकित होते, रोओं से पात भूल अधूरा खेल यहीं मुझे सुलाते सारी रात मिल तुमसे उड़ जाता रह जाता तन काँप-काँप; मुझे बाँधने आते हो अनंत सीमा में चुपचाप। स्वप्न सेली में सप्तरंग इंद्रधनु के चित्र अपार चिर रहस्यमय बनकर देते उन भावों को आकार बिखराते अँजुरी से मोती गढ़ते मरकत, तम से नाप। मुझे बाँधने आते हो अनंत सीमा में चुपचाप। विधु का शृंगार समेटे अधखुले दृगों का कोर छलकाते आसव का कोष तकते किस अतीत की ओर छू अरुण आरक्त कपोल संजीवन बनता, विष आप; मुझे बाँधने आते हो अनंत सीमा में चुपचाप। लोक तुम्हारे, नहीं वेदना नहीं जिसमें कोई अवसाद मधुमय चिर यौवन सा है तुझपे मिट जाने का स्वाद मैं तुमसे ही एक बना शून्य बना, चाहे दो शाप; मुझे बाँधने आते हो अनंत सीमा में चुपचाप। तुमको भुला न पाऊँ तुमको भुला न पाऊँ सूर्य किरण की उलझन में बन आभा, मिट क्षण में आतप ढूँढूँ कण-कण में नयनों को दिखा न पाऊँ तुमको भुला न पाऊँ। मेघों में बिजली सी छवि बनती मिटती जैसे अवि पुतली में ढूँढूँ प्रतिच्छवि जिसको समा न पाऊँ तुमको भुला न पाऊँ। बन तारक, गीत गाते निक्षेप चितवन बन जाते शीतलता भी नहीं सुहाते मन को पहचान न पाऊँ तुमको भुला न पाऊँ। चुपके-चुपके वह आते बन उच्छ्वास, उर में समाते देखूँ बस आते जाते उसको रोक न पाऊँ तुमको भुला न पाऊँ। नींद कहाँ आए अज्ञानी सागर लहरों सी रूहानी कह दे सब करुण कहानी खुद को सुला न पाऊँ तुमको भुला न पाऊँ। चपल पारद से मोती दृगों से अनवरत खोती फिर भी सपने उनके बोती अगम आँक न पाऊँ तुमको भुला न पाऊँ। |
अप्रैल 2024
हमारे संकलनFeatured |