पावन संकल्प

वदंपति घर में प्रवेश के लिए आतुर से गेट पर खड़े थे और वातावरण भी खुशियों से महक उठा था, मगर एकाएक, मम्मी-पापा नवदंपति के समीप पहुँचकर उन्होंने हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींचना चाहा।

“बेटे!” पापा बोले, “घर में प्रवेश से पहले आपको एक नई रस्म अदायगी करनी होगी...”

“बोलिए-कहिए, पापा...! हमें बताइए...क्यों नहीं करेंगे?” प्रफुल्लित मुद्रा में उसने सहमति जताई।

“आप दोनों को एक संकल्प लेना-भरना होगा अभी।” पापा के हाथ में एक पीतल का लोटा था, जिसमें कदान्वित् पानी था कि गंगाजल था।

“ठीक है, आप कहते हैं तो ले लेते हैं सकल्प।” नवदंपति ने अपने दोनों हाथों में जल भरा-लिया और उसके बाद बड़े गौर से पापा को देखने लगे।

“अगर कल को आपके बेटी होवे तो उसे बचाना है...बस।” सार-तत्व में जानकारी परोसते हुए वह पलटे।

...क्षणों तक नवदंपति पापाजी की बात पर मंद-मंद मुसकराते रहे और तभी बेखटके वो घर के भीतर दाखिल हो गए।

 

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