RNI NO - 62112/95
ISSN - 2455-1171
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कहानी दाढ़ी की...निनो की सही उम्र केवल छह साल है, ऐसा उसके बर्थ सर्टिफिकेट में लिखा है। लेकिन आप उसकी बुद्धि को आजमाकर देखें तो मालूम होगा कि वह कई बच्चों और बूढ़ों से भी सोच में दो कदम आगे है। हम भी उन बुजुर्गों में शामिल हैं। हमारी उम्र ८३ साल है। वह हमें ‘डी जे’ कहकर पुकारता है। डी जे? यानी डिस्क जोकी? यानी कि हम गाने-बजानेवाले? जब उसने पहली बार ‘डी जे’ कहकर पुकारा तो हम सोच में पड़ गए थे। अंग्रेजी शब्द ‘डिस्क जोकी’ के प्रथम दो अक्षर डी और जे के प्रयोग करने के पीछे उसकी मंशा क्या हो सकती है? क्या वह नहीं जानता कि हम इंडिया के जाने-माने चित्रकार, साहित्यकार, कार्टूनिस्ट हैं? भला हमें गाने-बजाने से क्या मतलब? आखिरकार एक रोज हमने पूछ ही लिया, ‘हम डी.जे. हैं?’ ‘अलबत्ता।’ ‘क्या मतलब?’ ‘डी.जे. माने दादाजी।’ यह तो हमने सोचा ही नहीं था। वैसे डी.जे. माने डब्बूजी भी हो सकता है! ‘क्या आप हमारे दादाजी नहीं हैं?’ ‘दादाजी...’ उसके व्यंग्य को अनसुना कर हमने एक चटकारा लिया। फिर जोड़ा, ‘कितना मीठा हिंदी शब्द है! क्यों न हम इसे ही इस्तेमाल करें!’ ‘वह घिसा-पिटा है।’ उसने दलील दी, ‘डी.जे. में इक्कीसवीं सदी की ठसक है।’ आप उसके किसी भी पसंदीदा विषय को लेकर सवाल उछालिए, उसका जवाब सुनकर आप यकीनन हैरान रह जाएँगे। यदि आप उसे विमान चालक की केबिन में बिजली के उपकरण के बारे में कुछ पूछेंगे तो वह आपको ‘एर स्पिड इंडिकेटर’ और ‘अल्टिमीटर’ के बारे में भी जानकारी देगा। उसके प्रिय विषयों में केवल हवाई जहाज ही नहीं, एलिवेटर, कंप्यूटर, कार और भारतीय रेल भी शामिल हैं। पिछली क्रिसमस की छुट्टियों में जब निनो के मम्मी-पापा ने ताजमहल देखने का इरादा जताया तो हम दोनों के साथ निनो की दादी भी प्रसन्न हो उठी। पूछा, ‘बेटा निनो, सफर हवाईजहाज से होगा या रेल से?’ ‘राजधानी से।’ ट्रेन के साथ उसने ट्रेन की प्रशंसा के पुल भी बाँध डाले। हम मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन पहुँचे, तब गाड़ी प्लेटफार्म पर लग चुकी थी। थोड़ी दूरी पर मोटरमैन ट्रेन के गार्ड से बतिया रहा था। निनो का ध्यान उस ओर था; बल्कि उसके कदम धीरे-धीरे उसी दिशा में बढ़ने लगे थे। शायद वह मोटरमैन यानी कि इंजनचालक की केबिन देखना चाहता था। यहाँ हमारी टू-टियर बोगी में सामान चढ़ाया जा रहा था। दादी पहले ही भीतर घुसकर खिड़कीवाली सीट पर पसर गई थी। बेटा और बहू अटैचियों को सीट के नीचे रखने में लगे थे। हम चुपके से खिसक निनो के पीछे चल दिए। वैसे उस पर नजर रखने का जिम्मा भी तो हमारा था। निनो वहीं जाकर रुका, जैसा कि हमने सोचा था। वह बाहर खड़ा रहकर जिस एकाग्रता और कौतूहल से केबिन का मुआयना कर रहा था, वह देख मोटरमैन प्रभावित हुआ। वह मुसकराता हुआ भीतर चला तो उसके पीछे निनो भी घुस गया, ताकि वह छोटे-बड़े सभी गैजिट गौर से देख सके। मोटरमैन ने उसे चंद ‘कंट्रोल’ के बारे में जानकारी भी दी। शांति से सबकुछ सुनने के बाद निनो ने पहला सवाल किया, ‘इस ट्रेन का इंजन WAP-५ है या ७?’ मोटरमैन की आँखें चौड़ी हो गईं। वह होश सँभाले, इससे पहले निनो ने दूसरा धमाका किया, ‘दुरांतो ट्रेन में कौन सा इंजन लगता है?’ सच कहूँ तो इस बार हम भी भौचक रह गए। अब सवाल यह उठता है कि निनो के उपजाऊ दिमाग का राज क्या है? इत्ती सारी जानकारियाँ उसकी खोपड़ी में घुसीं कैसे? उत्तर सरल है, पुस्तकों से। रात में सोने से पहले दादी से परीकथाएँ सुनना और दिन में घंटा भर श्रेष्ठ किताबें पढ़ना; ये आदतें उसमें पापा ने डाली थीं। (और पापा अलिफ में उसके पापा ने, यानी कि हमने) इसके अलावा इस नन्हीं सी उम्र में उसने इंटरनेट से दोस्ती गाँठ ली थी। उसके भीतर कुलबुलाते हर एक सवाल का जवाब उसे गूगल अंकल से मिल जाता था। जब कभी हम भी उसकी गलती सुलझाने में नाकाम रहते थे, वह तुरंत सर्च-इंजन का सहारा लेता था। इस मुन्ने में एक और भी खास बात थी। वह कोई भी सफाई, स्पष्टीकरण तब तक नहीं स्वीकार करता, जब तक उसे पूर्ण संतोष न हो। मसलन, आप अपने विचार उस पर लादने की कोशिश करते हैं, डियर निनो, क्या तुम जानते हो कि इस सुंदर संसार की रचना परमात्मा ने की है? तो वह हल्ला बोल देगा। परमात्मा माने क्या? वह पुरुष है या स्त्री? कहाँ रहता है वह? मैं उससे मिलना चाहूँगा। मुझे उससे कुछ शिकायतें भी हैं। क्या वह बता सकता है, हमारी क्लास के नीटर के दाएँ हाथ में छह उँगलियाँ यानी कि मुझसे एक ज्यादा क्यों है? दूसरा सवाल—एक नन्हे से बीज में से इतना बड़ा बरगद कैसे निकलता है? और हाँ, यह तो बताओ श्रीमान, मेरी प्यारी बिल्ली के प्राण उसने क्यों लिये? जब तक निनो संतुष्ट नहीं होगा, हमें लगता है, परमात्मा भी सिर खुजलाता रहेगा! एक रोज यों ही खयाल आया, क्यों न निनो को हमारे पानी बचाओ अभियान ‘ड्रोप डेड फाउंडेशन’ की मुहिम से जोड़ा जाए? इस साल पर्याप्त बारिश भी नहीं हुई थी। केवल भारत ही नहीं, सारी दुनिया पर जल-संकट के बादल मँडरा रहे थे। पानी की तलाश में पंख फड़फड़ा रहे परिंदे पके फलों की तरह धरती पर गिर प्राण त्याग देते थे। गाय-बैल और अन्य जीव-जंतु सूखे खेत-खलिहानों में मौत का इंतजार करते हुए खामोश पड़े थे। यही नहीं, गाँववालों ने पानी की तलाश में शहरों की ओर हिजरत शुरू कर दी थी। सूने-सपाट गाँव से भाँय-भाँय कर गुजरती हवाएँ आनेवाले हौलनाक दिनों का संकेत दे रही थी। हमारा दिल कह रहा था, यदि निनो हमारी बात पर यकीन कर लें तो वह अपने हमउम्र बच्चों को सरलता से प्रेरित कर जलमित्र बना सकता है। हमें भरोसा है, हमारा संदेश गाँठ बाँधकर आज के बच्चे आनेवाले कल को बहतर बना पाएँगे और हम यह भी जानते हैं कि जैसे ही हम अपना मुँह खोलेंगे, निनो अनुपम, बेजोड़ और टेढ़े-मेढ़े भी सवाल-पर-सवाल दागना शुरू कर देगा और इसके लिए हमें पहले से सावधान रहना होगा! हमने मन-ही-मन तय कर लिया, सबसे पहले हम सोच-विचारकर उन सारे सवालों की सूची तैयार करेंगे, जो निनो की खोपड़ी में से उछलकर हम पर वार कर सकते हैं! दूसरी सूची रहेगी उन्हीं सवालों के जवाब की। हमारी तोंद में तितलियाँ पंख फैलाने लगीं। हमारा एक पाँव कब्र में है और हम इत्मिहान की तैयारी कर रहे किसी छात्र की भाँति प्रश्नों के जाल में उलझ रहे थे। अब श्रीगणेश ‘कहाँ से और कैसे’ किया जाए? इस जुड़वाँ सवाल के जुड़वाँ जवाब हमें तुरंत मिल गए। शुरुआत घर की चहारदीवारी में न कर निनो को नुक्कड़वाले हरियाले, शांत पार्क में ले जाकर नाटकीय अंदाज में यानी कि सूरत मरियल बनाकर ‘ब्रेकिंग न्यूज’ की घोषणा करना—माई डियर निनो, शायद तुम नहीं जानते। अफ्रीका के ‘केपटाउन’ शहर में सिर्फ तीन महीनों के लिए पानी बचा है। तुरंत उसका मुँह खुलेगा तो? इस एक शब्द के उत्तर से हम भाँप लेंगे कि हमारी जुगलबंदी आगे कैसे बढ़ेगी! दमभर के लिए सोचो, बेटा। अगर हमें पता चले कि हमारे शहर की झील में केवल तीन माह का पानी बचा है, तब हम सब का हाल क्या होगा? कुछ भी नहीं। ऐं...कुछ भी नहीं? जी हाँ डी.जे., हम बोतल का पानी पीएँगे। सभी नागरिक तो महँगी-महँगी बोतलें नहीं खरीद सकते! इसके अलावा हमें स्नान करने, कपड़े धोने, खाना पकाने आदि कामों के लिए भी तो पानी चाहिए। गौर से हमारा चेहरा देख उसने एक नया ही सवाल उछाला... डी.जे., मान लो, थोड़ी देर के लिए, हमें पता चले कि आनेवाले तीन माह में सुनामी मुंबई शहर पर तबाही मचानेवाला है, तब आप क्या करेंगे? आपत्ति का मुकाबला करने के लिए हम पूरी तरह तैयार होंगे। तब हम आज से ही पानी की चिंता क्यों करें? जब हमारी झीलों में चंद माहों का पानी बचा होगा, हम कोई उपाय सोच निकालेंगे। अब तक तो हमें चौबीस घंटे पानी मिल रहा है। हमारे संवाद पर शायद ऐसे भी परदा गिर सकता है। निनो और भी टेढ़े-मेढ़े सवाल और लाजवाब पहेलियाँ पेश कर सकता है। हमें फूँक-फूँककर कदम उठाने होंगे। खयाली सवाल-जवाब का सिलसिला आगे बढ़ा—माई डियर, यदि हम हौलनाक भूकंप और खौफनाक सुनामी का जिक्र करें तो...समय से पहले सूचना मिलने पर हम अपने प्राण और कुछ सामान बचा सकते हैं। लेकिन पानी की समस्या काफी उलझनों से घिरी है। इसे सुलझाने के लिए हमें अभी से तैयारी करनी होगी। क्या तुमने अपनी दादी से नहीं सुना, आग लगने पर कुआँ खोदना मूर्खों का काम है? मतलब हमें अभी चलकर खुदाई शुरू कर देनी चाहिए! सही? कई एन.जी.ओ. ने गाँवों में कुएँ खोदना, झीलों की सफाई, नाला बनी हुई नदियों को पुन: जीवित करने जैसे काम शुरू कर दिए हैं। पर डी.जे., हम तो मुंबई में रहते हैं और यह महानगर ऊँची-ऊँची इमारतों से भरा पड़ा है। यह भी सही। हम एक टावर में रहते हैं। यहाँ हम कुआँ नहीं खोद सकते, लेकिन बारिश का जो पानी हमारी टैरेस पर गिरता है, उसे तो गटर में बह जाने से रोक सकते हैं! हमारी हाउसिंग सोसायटी के कमेटी मेंबरों ने इस पर काम भी शुरू कर दिया है। निनो को इस मुकाम तक लाने में हम सफल रहें तो उसे पानी बचाने के और तरीकों की जानकारी भी दे सकते हैं। मसलन रेन टर हार्वेस्टिंग। सरल शब्दों में कहें तो बारिश के पानी को इकट्ठा करके महीनों इस्तेमाल करना। पुरातन भारत में लोग बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए टाँका (टंकी) बनाते थे और छत पर पड़नेवाले पानी को भी पाईप द्वारा उसी में उतार देते थे। अंत में हम निनो को असली बात यह भी समझा सकते हैं कि जो बालक चंद बूँदें बचाना जान लें तो सालभर में वह सैकड़ों लीटर पानी बचाकर मिसाल बन सकता है। अब तक हमने निनो के हर संभावित सवाल के जवाब और चर्चा का हर पहलू दिमाग में बिठा लिया था। अब सिर्फ इंतजार था निनो के आने का। शाम में ठीक समय पर स्कूल बस ने निनो को हमारे टावर के गेट पर छोड़ा। हमने सातवीं मंजिल की बालकनी से उसे उछलते-कूदते हुए गेट में दाखिल हो लिफ्ट की ओर बढ़ते देखा। चंद मिनटों में तो वह घर में दाखिल हो चुका था। अपना स्कूल-बैग सोफे पर फेंक वह हमारे पास बालकनी में आया। आज वह कुछ अधिक ही प्रसन्न लग रहा था। ‘डी.जे.’...बगलवाली एक कुरसी पर बैठ जूते का फीता खोलते हुए उसने मुँह भी खोला, ‘क्या आप बता सकते हैं, आज मैं खुश क्यों हूँ?’ ‘लगता है, आज तुमने सौ मीटर की रेस में कप जीता है।’ ‘जी नहीं, आज स्पोर्ट-डे नहीं था।’ ‘तो क्या तुम्हारी ड्राईंग टीचर ने तुम्हारा काम देख तुम्हें शाबाशी दी?’ ‘आप लगभग सही है।’ वह अपने जूते एक ओर रखते हुए अदा से बोला, ‘मैंने जो निबंध लिखा था, उसे बीस में से बीस मार्क मिले। यही नहीं, टीचर ने मुझे वह पढ़कर पूरी क्लास को सुनाने के लिए कहा।’ सहज ही हमें ताज्जुब हुआ। हमने पूछा, ‘तुम्हारे निबंध का विषय क्या था?’ ‘पानी।’ पानी...हमारी हैरानी हमारी आवाज में भी घुली थी। अब तक हम उसे पार्क में ले जाकर गुफ्तगू करने का विचार भूल चुके थे। ‘उस लेख में तुमने क्या लिखा था?’ ‘बच्चे पानी जाया होने से कैसे बचा सकते हैं?’ अब मैं और उलझ गया। ‘कैसे?’ ‘आसान है, डी.जे.। मुंबई में रहकर हम गंगा मैया को तो नहीं बचा सकते, लेकिन चंद बूँदें तो बचा ही सकते हैं।’ ‘लेकिन कैसे?’ ‘पॉइंट नंबर वन...’ उसने सिलसिलेवार इब्तिदा की, ‘अगर आपको कहीं किसी भुलक्कड़ का खुला छोड़ा हुआ नलका दिखाई दे तो उसे तुरंत बंद करें। यदि आप इसे अपनी आदत में शामिल कर लें तो सालभर में काफी पानी नाली में बह जाने से बच सकता है। पॉइंट नंबर टू—स्कूल की छुट्टी होने के बाद जितना भी पानी हमारी बोतल में बचे, उसे कहीं भी फेंकने के बजाय किसी पेड़-पौधे को पिला दें। प्वॉइंट नंबर थ्री—आज से मैंने शावर के बजाय एक बालटी पानी से नहाने का तय किया है। इससे रोजाना पाँच बालटी पानी बचेगा। और हाँ डी.जे., अगर एक बालक रोजाना पाँच बकेट पानी बचा सकता है तो आप जैसे बुजुर्गों को दस बकेट बचाना चाहिए।’ हमें हँसी आ गई। कहा, ‘मुन्ने, क्या तुम नहीं जानते कि हमारी पहचान वॉटर वॉरियर यानी जलयोद्धा की है? आखिरी बारह साल से पानी की एक-एक बूँद बचाने के लिए हम जूझ रहे हैं। नोट कर लो, तुम पैदा भी नहीं हुए थे, तब से हम बालटी भर पानी से ही नहाते हैं और नहाने से पहले...?’ ‘नहाने से पहले...हम दाढ़ी बनाते हैं।’ ‘कैसे?’ ‘क्या मतलब?’ ‘नलका खुला छोड़कर या केवल लोटा भर पानी लेकर?’ हम समझ गए। नलका खुला छोड़कर शेव करने से दो-तीन बालटी पानी जाया हो जाता है। हम खामोश हो गए। सवाल इज्जत का था। कुछ कहना भी जरूरी था। सो कह दिया, निनो की शैली में... ‘तो?’ ‘दाढ़ी रख लो।’ उस रोज से निनो सिर्फ एक बालटी पानी से नहाता है और यकीन मानिए, हमारे चेहरे पर दाढ़ी फब्ती है, ऐसा लोग कहते हैं। अनुरूप, सी-१६/००३, सेक्टर-३, निकट स्टेशन शांतिनगर मीरा रोड (ईस्ट), मुंबई-४०११०७ aabidssurti@gmail.com —आबिद सुरती |
अप्रैल 2024
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